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वस्तुओं का वर्गीकरण|मूल्यह्रास की अवधारणा| समष्टि-अर्थशास्त्र की कुछ मूल अवधारणाएँ|Some Basic Concepts of Macroeconomics

वस्तुओं का वर्गीकरण|मूल्यह्रास की अवधारणा|समष्टि-अर्थशास्त्र की कुछ मूल अवधारणाएँ|Some Basic Concepts of Macroeconomics






                     वस्तुओं का वर्गीकरण

   वस्तुओं का दो प्रकार वर्गीकरण किया जाता है:

i) अंतिम वस्तुएँ तथा मध्यवर्ती वस्तुएँ

ii) उपभोग वस्तुएँ तथा पूँजीगत वस्तुएँ


                    अंतिम वस्तुएँ

अंतिम वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जो उत्पादन की सीमा रेखा को पार कर चुकी है और अपने अंतिम- प्रयोगकर्ताओं द्वारा प्रयोग के लिए तैयार है।

अंतिम- प्रयोगकर्ताओं कौन होते हैं ? 

i) उपभोक्ता
ii) उत्पादक होते हैं।

       
               अंतिम उपभोक्ता वस्तुएँ

वे वस्तुएँ हैं जो अपने अंतिम -प्रयोगकर्ताओं द्वारा उपयोग के लिए तैयार होती है और उपभोक्ता उनके अंतिम- प्रयोगकर्ताओं होते हैं।


                अंतिम उत्पादक वस्तुएँ

वे वस्तुएँ है जो अपने अंतिम-प्रयोगकर्ताओं द्वारा उपभोग के लिए तैयार होती है और उत्पादक उनके अंतिम -प्रयोगकर्ताओं होते हैं।

• परिवार द्वारा अंतिम उपभोक्ता वस्तुओं पर किए जाने वाले व्यय को उपभोग व्यय पर कहाँ जाता है।

• उत्पादकों द्वारा अंतिम वस्तुओं पर किए जाने वाले व्यय को निवेश व्यय कहा जाता है।

अंतिम वस्तुओं पर व्यय = उपभोग वय्य + निवेश व्यय 


                   मध्यवर्ती वस्तुएँ

मध्यवर्ती वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जो उत्पादन की सीमा रेखा के अंदर होती है, इनमें अभी मूल्य वृद्धि की जानी है और ये वस्तुएँ अंतिम-प्रयोगकर्ताओं द्वारा उपयोग के लिए अभी तैयार नहीं होते हैं।

   एक की वस्तुएँ अंतिम अथवा मध्यवर्ती हो सकती है

• कुछ वस्तुओं को अंतिम वस्तुओं तथा कुछ अन्य वस्तुओं को मध्यवर्ती वस्तुओं का नाम देना मुमकिन नहीं। एक ही वस्तु अंतिम अथवा मध्यवर्ती वस्तु हो सकती है। यह अंतर वस्तुओं के अंतिम उपयोग पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए बिस्कुट के उत्पादन में चीनी का कच्चे माल के रूप में प्रयोग एक मध्यवर्ती वस्तु है। बल्कि एक परिवार द्वारा दूध अथवा चाय में प्रयोग की गई चीनी एक अंतिम वस्तु है।

       उपभोग वस्तुएँ या उपभोक्ता वस्तुएँ

उपभोग वस्तुएँ वे वस्तुएँ होती हैं जो मानवीय आवश्यकताओं को प्रत्यक्ष रूप से संतुष्ट करती हैं। 

उपभोग वस्तुएँ का वर्गीकरण:

i) टिकाऊ वस्तुएँ

ii) अर्ध -टिकाऊ वस्तुएँ

iii) गैर- टिकाऊ वस्तुएँ

iv) सेवाएँ

                   टिकाऊ उपभोग वस्तुएँ

टिकाऊ उपभोग वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जिनका उपयोग कई वर्षों तक किया जा सकता है तथा जिनका सापेक्ष मूल्य भी अधिक होता है।

उदाहरण: रेडियो, कार, मोबाइल फोन


                        
                 अर्ध -टिकाऊ उपभोग वस्तुएँ

अर्ध -टिकाऊ उपभोग वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जिम का उपयोग एक वर्ष या उससे कुछ अधिक समय के लिए किया जा सकता है। ये वस्तुएँ बहुत ऊंचे मूल्य कि नहीं होती है।

उदाहरण: कपड़े, फर्नीचर


                      पूँजीगत वस्तुएँ

 पूँजीगत वस्तुएँ  ये वस्तुएँ उत्पादकों द्वारा अन्य वस्तुओं के उत्पादन के लिए प्रयोग की जाती है।

उदाहरण: मशीन, भूमि

     उपभोग व्यय की अवधारणा तथा घटक

उपभोग वय्य से अभिप्राय अर्थव्यवस्था में समग्र उपभोग व्यय से है।

एक अर्थव्यवस्था में उपभोक्ता कौन लोग होते हैं ?

i) परिवार

ii) सरकार

iii) गैर लाभ-निजी

• परिवार अपनी आवश्यकताओं को संतुष्ट करने के लिए उपभोक्ता वस्तुओं को खरीदते हैं।

• सरकार उपभोक्ता वस्तुओं की खरीद, सुरक्षा बलों तथा सरकारी स्कूलों में दोपहर के भोजन का वितरण करने तथा ऐसे अन्य उद्देश्य के लिए करती है। 

• गैर लाभ-निजी संस्थाएँ दान हेतु उपभोक्ता वस्तुएँ खरीदती हैं।

• यदि हम परिवार, सरकार तथा गैर लाभ-निजी संस्थाएँ दान हेतु उपभोक्ता वस्तुओं की खरीद पर किए गए व्यय का जोड़ करे तो हमें अर्थव्यवस्था में किए गए जाने वाले कुल उपभोग वय्य का अनुमान प्राप्त होता है।


             निवेश की अवधारणा तथा घटक

     
                        निवेश क्या है ?

निवेश से अभिप्राय पूँजी के स्टॉक मैं होने वाली वृद्धि से है।



           निवेश के घटक कितने होते हैं ?

i) स्थिर निवेश

ii) माल -सूची निवेश


                            स्थिर निवेश

स्थिर निवेश से अभिप्राय एक लेखा वर्ष के दौरान उत्पादकों की स्थिति परिसंपत्तियों स्टॉक में वृद्धि का होना है।

•स्थिर निवेश को स्थिर पूँजी निर्माण भी कहा जाता है। इसका निहितार्थ स्थिर परिसंपत्तियों के रूप में पूँजी के स्टॉक में वृद्धि है, जिसका कई वर्षों उत्पादन की प्रक्रिया में बार-बार उपयोग किया जाता है।


                  स्थिर निवेश का महत्व

i) स्थिर निवेश से उत्पादकों की उत्पादन क्षमता में वृद्धि होती है।

ii) उत्पादकों की उत्पादन क्षमता में वृद्धि होने से, स्थिर निवेश के कारण अर्थव्यवस्था में उत्पादन का उच्च स्तर प्राप्त होता है।

      
                   माल- सूची निवेश

किसी एक समय पर उत्पादकों के पास जो स्टॉक होता है उसमें (i) तैयार वस्तुएँ (ii) अर्ध तैयार वस्तुएँ (iii) कच्चा माल सम्मिलित होता है। इसे माल सूची स्टॉक कहाँ जाता है।

• वर्ष के दौरान माल सूची -स्टॉक में होने वाले परिवर्तन को उत्पादक का माल-सूची निवेश कहते हैं।

सकल निवेश, शुद्ध निवेश, तथा मूल्यह्रास की अवधारणा


                            सकल निवेश

सकल निवेश से अभिप्राय वर्ष के दौरान पूँजीगत वस्तु के कुल उत्पादन से है ।

• इसमें सम्मिलित होते हैं

i) पूँजी के विद्यमान स्टॉक के पुनः स्थापन के लिए उपयोग की गई पूँजीगत वस्तुएँ 

ii) पूँजी के विद्यमान स्टॉक में शुद्ध वृद्धि के रूप में उपयोग की गई पूँजीगत वस्तुएँ।

सकल निवेश= शुभ निवेश +मूल्यह्रास

                          शुद्ध निवेश

पूँजीगत वस्तुएँ पूँजी के विद्यमान स्टॉक में शुद्ध वृद्धि के रूप में उपयोग की जाती है जिसे शुद्ध निवेश कहते हैं।

शुद्ध निवेश=शुभ निवेश-मूल्यह्रास


                          मूल्यह्रास
 
मूल्यह्रास से स्थित परिसंपत्तियों के उपयोग से मुल्य में होने वाली हानि से है।

जो निम्न कारणों से होती है: 

i) सम्मानीय टूट-फूट

 ii) आकस्मिक हानि

iii) प्रत्याशित अप्रचलन या अप्रत्याशित अप्रचलन

 


                      प्रत्याशित अप्रचलन

प्रत्याशित अप्रचलन से अभिप्राय तकनीक में परिवर्तन अथवा माँग में परिवर्तन के कारण स्थिर परिसंपत्तियों के मूल्य में होने वाली गिरावट से है।

प्रत्याशित अप्रचलन के दो घटक है:

i) प्रौद्योगिक में परिवर्तन के कारण परिसंपत्तियों का  अप्रचलन हो जाता है तब उनके मुल्य में हानि होती है।

ii) माँग में परिवर्तन के कारण जब स्थिर परिसंपत्तियों का  अप्रचलन हो जाता है तब भी उनके मुल्य में हानि होती है।

       
                अप्रत्याशित अप्रचलन

इससे अभिप्राय प्राकृतिक आपदाओं अथवा आर्थिक मंदी के कारण स्थिर परिसंपत्तियों के मूल्य में होने वाली गिरावट से है।

 
                   स्टॉक और प्रवाह 

                            स्टॉक

 स्टॉक, समय की एक निश्चित बिंदु पर वाली जाने वाली मात्रा है।

उदाहरण:1 जनवरी,2019 को आपके बैंक खाते में ₹ 20000 हो सकते हैं।10 जनवरी,2019 को आपके बैंक खाते में ₹ 25000 हो सकते हैं।

         
                               प्रवाह

प्रवाह, समय की एक विशिष्ट अवधि ने मापी जाने वाली मात्रा है।

उदाहरण: आप शायद ₹ 2000 प्रतिमाह जेब खर्च प्राप्त करते हैं, आप शायद ₹ 60 प्रतिदिन खर्च करते हो।


         अर्थव्यवस्था के कितने क्षेत्र है ?

अर्थव्यवस्था के चार क्षेत्र है:

i) परिवार क्षेत्र : इसमें वस्तुओं तथा सेवाओं के उपभोक्ताओं को सम्मिलित किया जाता है। परिवार या ग्रहस्थ क्षेत्र, उत्पादन के साधनों का स्वामी भी होता है।

ii) उत्पादक क्षेत्र: इसमें अर्थव्यवस्था की सभी उत्पादन करने वाली इकाइयाँ सम्मिलित होती हैं। वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन हेतु फार्में उत्पादन के कारकों  को परिवार क्षेत्र से भाड़े पर लेती है अथवा खरीदती हैं।

iii) सरकारी क्षेत्र: इसमें कल्याणकारी एजेंसी के रूप में सरकार तथा उत्पादन के रूप में सरकार सम्मिलित होती है।कल्याणकारी एजेंसी के रूप में सरकार कानून एवं व्यवस्था तथा सुरक्षा जैसे कल्याणकारी कार्य करती है।

iv) विदेशी क्षेत्र : इसमें उन  क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है जो वस्तुओं के निर्यात एवं आयात से तथा घरेलू अर्थव्यवस्था एवं शेष विश्व के बीच पूँजी के प्रवाह से संबंधित होती हैं।
    
      आय के चक्रीय प्रवाह से क्या अभिप्राय है ?

आय के चक्रीय प्रवाह से अभिप्राय उत्पादन,आय सृजन तथा व्यय की न समाप्त होने वाली क्रियाओं के प्रवाह से है।

     
     आय के चक्रीय प्रवाह के कितने प्रकार हैं ?  

आय के चक्रीय प्रवाह के दो प्रकार है:

i) वास्तविक प्रवाह: से अभिप्राय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के मध्य वस्तुओं तथा सेवाओं के प्रवाह से है।




ii) मौद्रिक प्रवाह: से अभिप्राय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के मध्य मुद्रा के प्रवाह से है। 




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