आधारिक संरचना|Infrastructure
आधारिक संरचना क्या है ?
आधारिक रचना से अभिप्राय देश की आर्थिक और सामाजिक विकास की सहयोगी व्यवस्था से है।
आधारिक रचना कितने प्रकार के होते है ?
आधारिक रचना के दो प्रकार हैं।
1) आर्थिक आधारिक संरचना
2) सामाजिक आधारिक संरचना
आर्थिक आधारिक संरचना
आर्थिक आधारिक संरचना से अभिप्राय सहयोगी व्यवस्था (जैसे- शक्ति, परिवहन तथा संचार) के उन तत्वों से हैं। जो अर्थव्यवस्था में उत्पादन गतिविधियां के लिए प्रेरक -शक्ति के रूप में कार्य करती है।
सामाजिक आधारिक संरचना
सामाजिक आधारिक संरचना से अभिप्राय सहयोगी व्यवस्था के कुल तत्व ( जैसे- स्कूल,कॉलेज, अस्पताल तथा नर्सिंग होम) से है। जो किसी देश के सामाजिक विकास के लिए प्रेरक शक्ति के रूप में कार्य करती है।
आधारिक संरचना का महत्व क्या है ?
1) आधारिक संरचना निवेश को प्रेरित करती है: आधारिक संरचना निवेश को प्रेरित करती है। उदाहरण: राजमार्गों के एक विकसित नेटवर्क ने देश के सभी भागों में निवेश को प्रेरित किया है। क्योंकि यह देश के विभिन्न प्रदेशों के मध्य वस्तुओं और सेवाओं के कुशल संचालक को सुविधाजनक बनाता है।
2) आधारिक संरचना बाजार के आकार में वृद्धि करती है: जैसे कि हम जानते हैं बड़े पैमाने पर उत्पादन तब संभव होता है जब बाजार का आकार बड़ा होता है। आधारिक संरचना बाजार के आकार को बढ़ावा देती है।
3) आधारिक संरचना कार्य करने की दक्षता को बढ़ावा देती है: इसमें शैक्षिक तथा चिकित्सक संस्थाएँ शामिल हैं। ये संस्थाएँ शिक्षा, कौशल निर्माण तथा स्वस्थ्य सुविधा को प्रोत्साहित करते हैं। यह लोगों के कार्य करने की दक्षता को बढ़ाने के महत्वपूर्ण प्राचल हैं। इससे कार्यकुशलता बढ़ती है और इसलिए उत्पादकता में वृद्धि होती है।
4) आधारिक संरचना FDI को प्रेरित करती है: विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) भारत जैसे अल्पविकसित अर्थव्यवस्था में यहां घरेलू निवेश बहुत कम होता है, सन् 1991 से भारतीय अर्थव्यवस्था में FDI काफी देर तक बढ़ गया है। इसका मुख्य कारण आधारिक संरचना है।
भारत में आधारिक संरचना की स्थिति
भारत में आधारिक संरचना की स्थिति का वर्णन करने के लिए हम ऊर्जा एवं स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करेंगे।
● ऊर्जा
ऊर्जा आर्थिक आधारिक संरचना का एक महत्वपूर्ण तत्व है। ऊर्जा के बिना औधोगिक उत्पादन संभव नहीं है। कृषि में भी ऊर्जा के बिना उत्पादन संभव नहीं है। कृषि क्षेत्र में ट्रैक्टर, ट्यूबवैल आदि को चलाने के लिए ऊर्जा एक महत्वपूर्ण आगत है। यहाँ तक भी द्वितीयक क्षेत्र में मशीनों को चलाने के लिए ऊर्जा एक महत्वपूर्ण आगत है। तृतीय क्षेत्र में Computer को चलाने के लिए ऊर्जा एक महत्वपूर्ण आगत है।
ऊर्जा के परंपरागत तथा गैर परंपरागत स्रोत
● ऊर्जा के पारंपरिक स्त्रोत वे स्त्रोत हैं जिनकी हमें जानकारी है और और जिनका प्रयोग बहुत लंबे समय से हुआ है। उदाहरण : कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस तथा बिजली।
● ऊर्जा के गैर-पारंपरिक स्त्रोत वे स्त्रोत हैं जीन की खोज हाल ही वर्षों में की गई और जिनका प्रयोग लोकप्रियता होनी अभी बाकी है। उदाहरण: सौर ऊर्जा, वायु ऊर्जा, बायोमास।
पारंपरिक स्त्रोत
ऊर्जा के परंपरागत स्त्रोत निम्नलिखित है:
1) कोयला: भारत में ऊर्जा के परंपरागत स्त्रोत में से पहला बहुत ही महत्वपूर्ण स्त्रोत है।
i) भारत कोयले के उत्पादन में अग्रणी है।
ii) 1950 -51 में भारत में कोयला का उत्पादन 328 लाख टन था,जो 2015-16 में बढ़कर 6,380 लाख टन हो गया।
iii) भारत में उत्पादित कुल ऊर्जा में कोयले का भाग 67 प्रतिशत है।
2) पेट्रोलियम: भारत में ऊर्जा का एक अन्य परंपरागत स्त्रोत है।
परंतु भारत में पेट्रोलियम का उत्पादन इसकी मांग की तुलना में बहुत कम है । इसका कारण हम शेष विश्व से बहुत मात्रा में पेट्रोलियम आयात करते हैं।
3) प्राकृतिक गैस: यह भी परंपरागत ऊर्जा एक महत्वपूर्ण स्त्रोत ह इसका प्रयोग उर्वरक तथा पेट्रोलियम पदार्थें में कच्चे माल के रूप में और घरों में कुकिंग गैस के रूप में किया जाता है।
i) प्राकृतिक गैस के मुख्य भंडार मुंबई, गुजरात, त्रिपुरा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु राजस्थान में पाए जाते हैं
ii) LPG भी कच्चे तेल के उप- पदार्थ के रूप में उत्पादित की जाती है।
4) बिजली: भारत में ऊर्जा का सबसे उपयोगी परंपरागत स्त्रोत हे।
भारत में बिजली के मुख्य स्रोत है:
i) ताप विद्युत स्टेशन
ii) जल विद्युत स्टेशन
iii) आण्विक शक्ति स्टेशन
हम जल बिजली उत्पादन पर अधिक निर्भर रहे हैं। पर अब हम बिजली के स्रोत के रूप में ताप ऊर्जा को अधिक महत्व दे रहे हैं।
जबकि ताप ऊर्जा स्टेशनों में कोयला का प्रयोग पर्यावरण प्रदूषिण फैलता है।
गैर परंपरागत स्रोत
ऊर्जा के गैर परंपरागत स्रोत निम्नलिखित हैं
i) सौर ऊर्जा
ii) वायु ऊर्जा
iii) बायोमास ऊर्जा
iv) जियोथर्मल ऊर्जा
● स्वास्थ्य
स्वास्थ्य से अभिप्राय एक व्यक्ति की स्वस्थ शारीरिक एवं मानसिक अवस्था से है। जिसका अर्थ केवल बीमारी का न होना ही नहीं है।
अच्छे स्वास्थ्य से अभिप्राय है:
i) कठिन कार्यों को संभालने की कुशलता में संपूर्ण वृद्धि,
ii) श्रम की उत्पादकता में वृद्धि
iii) मानसिक योग्यताओं में वृद्धि
स्वास्थ्य की उभरती हुई चुनौती
i) स्वास्थ्य सेवाओं का असमान वितरण: देश के ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों के बीच स्वास्थ्य सेवाओं का बंटवारा बहुत ही आसमान है। अधिकतर अस्वस्थ संबंधित सुविधाएं शहरी क्षेत्रों तक ही सीमित है।
ii) सक्रंमक बीमारियाँ : एड्स, HIV और SARS जैसी संक्रामक बीमारियाँ समाज के लिए गंभीर खतरा बनी हुई हैं।
iii) निजीकरण: स्वास्थ्य सेवाओं के संबंध में सरकार धीरे-धीर निजी करण की ओर बढ़ रही है। सरकारी अस्पतालों का स्थान तेजी से बढ़ रहे निजी अस्पताल ले रहे हैं। जिससे स्वास्थ्य सेवाएँ निरंतर महँगी हो रही हैं और देश के करोड़ों लोगों के पास से बाहर होती जा रही हैं।
iv) घटिया रख-रखाव : सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों का रख रखवा बहुत ही घटिया है। निजी तथा सार्वजनिक अस्पतालों में गुणात्मक अंतर इतना अधिक होता है के लोगों को विवश होकर नीचे अस्पतालों तथा नर्सिंग होम मैं अपना इलाज करवाना पड़ता है।
भारतीय चिकित्सा पद्धति
i) भारतीय चिकित्सा पद्धति, चिकित्सा की व्यवस्था है जिसका मूल या तो भारतीय है यह जो बाहर से आई है और भारतीय संस्कृति मैं आत्मसात हो गई है।
ii) भारत के पास इस श्रेणी में छ: मान्यता प्राप्त प्रणालियाँ है जोकि आयुर्वेद, योगा, यूनानी, सिद्ध, प्राकृतिक चिकित्सा और होम्योपैथी हैं।