रोजगार और बेरोजगारी
बेरोजगारी क्या है ?
बेरोजगारी के से अभिप्राय ऐसी स्थिति से है जिसमें उन सभी लोगों को काम नहीं मिलता जो प्रचलित मजदूरी दर पर काम करने के इच्छुक होते हैं तथा काम करने के लिए योग्य होते हैं।
श्रमिक कौन है ?
श्रमिक यह व्यक्ति है जो किसी उत्पादन क्रिया लगा होता है।
मजदूरों के कितने प्रकार होते है ?
मजदूरों के दो प्रकार होते हैं।
i) स्वनियोजित मजदूर
ii) भाड़े के मजदूर
स्वनियोजित मजदूर
ये वह लोग होते हैं जो अपने ही व्यापार अथवा व्यवसाय मैं लगे होते हैं।
भाड़े के मजदूर
यह वह लोग होते हैं जो दूसरों के लिए काम करते हैं।
भाड़े के मजदूर के कितने प्रकार होते हैं ?
भाड़े के मजदूर के दो प्रकार होते हैं ।
i) अनियमित मजदूर
ii) नियमित मजदूर
अनियमित मजदूर
अनियमित मजदूर को दैनिक मजदूरी पर रखा जाता है। मालिक उन्हें नियमित आधार पर नहीं लगाते। उन्हें सामाजिक सुरक्षा के लाभ भी नहीं मिलते हैं। जैसे- भविष्य निधि, उपदान, अथवा पेंशन
. नियमित मजदूर
नियमित मजदूर के नाम मालिकों की स्थायी वेतन- सूची पर लिखा जाता है। ये लोग सभी प्रकार के सामाजिक सुरक्षा के लाभ मिलता है। जैसे- पेंशन, उपदान
श्रम आपूर्ति से क्या अभिप्राय है ?
श्रम आपूर्ति से अभिप्राय है कि श्रमिक कि उस संख्या से है जो एक दी हुई मजदूरी दर पर अपनी आपूर्ति करने के लिए तैयार हैं। मजदूरी दर में परिवर्तन होने से श्रम की आपूर्ति में परिवर्तन होता है।
श्रम बल से क्या अभिप्राय है ?
श्रम बल से अभिप्राय श्रमिकों कि उस संख्या से है जो वास्तव में काम कर रहे हैं या काम करने के इच्छुक हैं। इसका मजदूरी दर से कोई संबंध नहीं है।
कार्यबल से क्या अभिप्राय है ?
कार्यबल से अभिप्राय वास्तव में काम करने वाले व्यक्तियों से है न कि उन व्यक्तियों से जो काम करने के इच्छुक हैं।
कार्यबल= श्रम बल- उन व्यक्तियों की संख्या जो काम नहीं कर रहें किंतु उन काम करने के इच्छुक हैं
हम निम्न प्रकार से बेरोजगार व्यक्तियों की संख्या का अनुमान लगाते हैं।
बेरोजगार व्यक्तियों की संख्या= श्रम बल- कार्यबल
बेरोजगारी की दर तथा सहभागिता दर इससे संबंधित है।
कुछ महत्वपूर्ण तथ्य है:
i) भारत में कार्यबल की संख्या लगभग 40 करोड़ लोगों की है।
ii) कार्यबल में लगभग 70% पुरुष तथा 30% महिला श्रमिक है ।
iii) कार्यबल का लगभग 70% ग्रामीण क्षेत्रों में तथा 30% शहरी क्षेत्र में पाए जाते हैं।
iv) महिला कार्यबल का प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 30% है जबकि शहरी क्षेत्रों में यह केवल 20% है।
ये तथ्य दो प्रशन प्रस्तुत करते हैं
i) हमारा अधिकांश कार्यबल ग्रामीण- आधारित क्यों है ?
ii) महिला श्रमिकों का प्रतिशत निम्न तथा शहरी क्षेत्रों में और भी अधिक निम्न क्यों होता है?
हमारा अधिकांश कार्यबल ग्रामीण-आधारित क्यों है ?
i) अधिकांश नौकरियां ग्रामीण क्षेत्र में पाई जाती हैं।
ii) हमारा अधिकांश सकल घरेलू उत्पाद ग्रामीण अर्थव्यवस्था से प्राप्त होता है। विरोधाभासी रूप से नहीं। इसका अर्थ है कि खेती तथा संबद्ध क्रियाओं में अधिक लोग लगे हुए हैं किंतु उन उनका GDP में योगदान कम है। यह इस बात का संकेत देते है कि ग्रामीण क्षेत्रों के श्रमिकों की उत्पादकता निम्न है। निम्न उत्पादकता का अर्थ है निम्न आय है।
महिला श्रमिकों का प्रतिशत निम्न तथा शहरी क्षेत्रों में और भी अधिक निम्न क्यों होता है?
इसका कारण है कि
i) भारत में महिला शिक्षा अभी व्यापक नहीं हुई, नौकरी के अवसर बहुत कम है।
ii) शहरी क्षेत्रों में अखणड्धिकतर परिवारों में स्त्रियों के लिए नौकरी करना पारिवारिक निर्णय द्वारा फैसला होता है न कि स्त्रियों के द्वारा फैसला किया जाता है।
सहभागिता की दर
सहभागिता की दर से अभिप्राय है कि उत्पादन क्रिया या गतिविधि में लोगों की सहभागिता से है। जैसा कि आप जानते है कि इसे देश की कुल जनसंख्या तथा कार्यबल के अनुपात के द्वारा मापा जाता है।
कार्यबल का अनियमितीकरण से क्या अभिप्राय है ?
इससे अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें समय के साथ कूल कार्यबल में भाड़े लिए गए आकिस्मक श्रमिकों को प्रतिशत में बढ़ने की प्रवृत्ति पाई जाती है।
कार्यबल का अनौपचारिकीकरण से क्या अभिप्राय हैं ?
इस से अभिप्राय उस स्थिति से है जब लोगों में अर्थव्यवस्था के औपचारिक क्षेत्र के स्थान पर अनौपचारिक क्षेत्र में रोजगार के अफसर अधिक पाने की प्रवृत्ति पाई जाती है।
औपचारिक क्षेत्र क्या है ?
औपचारिक क्षेत्र से अभिप्राय अर्थव्यवस्था के संगठित क्षेत्र से है। इसमें वे सभी सरकारी विभाग, सार्वजनिक उद्यम तथा निर्धन सम्मिलित किए जाते हैं इसमें 10 या उससे अधिक श्रमिक काम करते हैं।
अनौपचारिक क्षेत्र क्या है ?
अनौपचारिक क्षेत्र से अभिप्राय अर्थव्यवस्था के असंगठित क्षेत्र से। इसमें वे सभी निजी उद्यम सम्मिलित होते हैं जिसमें 10 से कम श्रमिक काम करते हैं। असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों को अनौपचारिक श्रमिक का जाता है।
ग्रामीण एवं शहरी बेरोजगारी
ग्रामीण बेरोजगारी : ग्रामीण क्षेत्रों में मुख्य रूप से अदृश्य बेरोजगारी तथा मौसमी बेरोजगारी पाई जाती है।
अदृश्य बेरोजगारी
अदृश्य बेरोजगारी वह स्थिति है जिसमें किसी कार्य को करने के लिए जितने श्रमिकों की आवश्यकता होती है उससे अधिक श्रमिक काम पर लगे होते हैं।
मौसमी बेरोजगारी
भारत के ग्रामीण क्षेत्र में पाई जाने वाली दूसरे किस्म की बेरोजगारी है। इसका कारण यह है कि कृषि एक मौसमी व्यवसाय है। इसमें कृषि मोसम के अनुसार फसलें बोई जाती हैं।
शहरी बेरोजगारी
शहरी क्षेत्रों में मुख्य रूप से वह औद्योगिक बेरोजगारी तथा शिक्षित बेरोजगारी पाई जाती है।
औधोगिक बेरोजगारी क्या है ?
इस क्षेत्र में उन निरक्षर व्यक्तियों को शामिल किया जा सकता है जो उद्योग, खनिज, यातायात, व्यापार तथा निर्माण आदि व्यवसायों मैं काम करने के लिए तैयार हो।
औधोगिक बेरोजगारी मुख्य कारण है।
i) समय के साथ जनसंख्या में तीव्र वृद्धि। जनसंख्या वृद्धि के कारण की आपूर्ति में भी वृद्धि होती है।
ii) शहरी क्षेत्रों में उद्योगों का केंद्रीकरण। शहरी क्षेत्रों में उद्योगों के केंद्रीकरण के कारण नौकरी की तलाश में जनसंख्या गांव से निकलकर शहरों में आकर बसने लगी है जिससे सबको रोजगार के अवसर औद्योगिक क्षेत्र में नहीं मिल रहा है। इसका कारण है कि भारत में अभी इतने उद्योगों की स्थापना नहीं हुई है।
शिक्षित बेरोजगारी
भारत में शिक्षित वर्ग में भी बेरोजगारी की समस्या काफी गंभीर है। यह एक ऐसी समस्या है जो देश के हर प्रांत में विस्तारित तथा देश की सामाजिक शांति तथा भाईचारा में एक गंभीर चुनौती के रूप में खड़ी है।
इसका मुख्य कारण है
i) महाविद्यालय, कॉलेज, स्कूल आदि की संख्या में वृद्धि होने के कारण शिक्षित लोगों की संख्या में काफी अधिक वृद्धि का होना।
ii) भारत में शिक्षा प्रणाली रोजगार- पेरक नहीं बल्कि उपाधि प्रेरक है।
iii) भारत में रोजगार के अवसरों में इतनी वृद्धि नहीं हुई है जितनी शिक्षित लोगों की संख्या में वृद्धि हुई है। इसलिए शिक्षित बेरोजगारी निरंतर वृद्धि हो रही है।
ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्र में बेरोजगारी के सामान्य प्रकार
1) खुली बेरोजगारी: खुली बेरोजगारी वह स्थिति है जिसमें श्रमिक काम करने के लिए तैयार होता है तथा उसमें काम करने के लिए आवश्यक योग्यता भी होती है परंतु उसे काम नहीं मिलता।
2) संरचनात्मक बेरोजगारी:संरचनात्मक बेरोजगारी वह बेरोजगारी है जो अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक परिवर्तन के कारण उत्पन्न होती है।
संरचनात्मक परिवर्तन मुख्य रूप से दो प्रकार से होता है।
i) प्रौद्योगिकी में परिवर्तन के कारण पुराने तकनीकी कारीगरों की आवश्यकता नहीं रहती, वे बेरोजगार हो जाते हैं।
ii) माँग के प्रतिमान में परिवर्तन के कारण कुछ उद्योग बंद हो जाते हैं और श्रमिकों को उद्योगों से बाहर कर दिया जाता हैं।
3) अल्परोजगार: अल्परोजगार वह अवस्था है जिसमें एक व्यक्ति को पूर्णकालिक काम नहीं मिलता है अर्थात एक श्रमिक को जितने काम करना चाहिए उसे कम समय काम मिलता है।
अल्परोजगार के कितने प्रकार है ?
अल्परोजगार रोजगार दो प्रकार के हैं।
i) दृश्य अल्परोजगार: इस अवस्था में लोगों को काम करने के सामान्य घंटे से कम काम मिलता है। जैसे भारत में एक व्यक्ति 8 घंटे काम करता है। यदि उसे अपनी इच्छा के विरुद्ध केवल 4 घंटे काम करना पड़े तो इस अवस्था को दृश्य और बेरोजगार कहा जाएगा।
ii) अदृश्य अल्परोजगार: इस अवस्था में लोग काम तो पूरा समय करते हैं परंतु उनकी आए बहुत कम होती है या उन्हें ऐसे काम करने पड़ते हैं जिसमें उनकी योग्यता का पूरा उपयोग नहीं हो पाता। जैसे- एक एम○ ए○ पास व्यक्ति को चपरासी का काम करना पड़े तो वह अदृश्य अल्परोजगार कहां जाएगा।
4) चक्रीय बेरोजगारी: यह बेरोजगारी अर्थव्यवस्था में चक्रिय उतार-चढ़ाव के वजह से होता है। आर्थिक तेजी, आर्थिक सुस्ती, आर्थिक मंदी तथा आर्थिक पुनरुत्थान, ये चारों अवस्थाएं या चक्र एक बाजार अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ हैं।
आर्थिक तेजी के दौरान आर्थिक गतिविधियों का स्तर ऊंचा हो जाता है और रोजगार की मात्रा भी बढ़ जाती है।
आर्थिक सुस्ती वह अवस्था है जब अर्थव्यवस्था में तरलता संकट होता है जिसके कारण उत्पादन धीमा हो जाता है और रोजगार के अवसरों में गिरावट होती है।
आर्थिक मंदी वह अवस्था है जिसमें समग्र मांग बहुत अधिक मात्रा में गिर जाती है जिससे उत्पादन तथा रोजगार में काफी गिरावट होती है।
आर्थिक पुनरुत्थान वह अवस्था है जिसमें आर्थिक गतिविधियाँ फिर से उभरना शुरू हो जाती है। समग्र मांग में वृद्धि होने से उत्पादन बढ़ना शुरू हो जाता है। रोजगार अवसर बढ़ने शुरू हो जाते हैं।
भारत में बढ़ती हुई बेरोजगारी के कारण
i) सीमा आर्थिक विकास: भारतीय अर्थव्यवस्था अल्पविकसित है और यहां आर्थिक विकास की गति भी धीमी रही है इसलिए बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए धीमा आर्थिक विकास रोजगार के अधिक अवसर प्रदान नहीं कर पाता है।
ii) जनसंख्या में वृद्धि: भारत में जनसंख्या में निरंतर वृद्धि सदा से ही गंभीर समस्या बनी हुई है। जनसंख्या में अधिक वृद्धि बेरोजगारी का एक मुख्य कारण है। बारह पंचवर्षीय योजनाओं के समाप्त हो जाने के बाद भी बेरोजगारों की संख्या घाटी नहीं बढ़ी है।
iii) संयुक्त परिवार प्रणाली: संयुक्त परिवार प्रणाली भी अदृश्य बेरोजगारी को बढ़ावा देती है। संयुक्त प्रणाली ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में पाई जाती है।
iv) कृषि-एक मौसमी व्यवसाय: कृषि हमारे देश में न केवल अविकसित है,यह एक मौसमी काम-धंधा देने वाला व्यवसाय है। बेशक कृषि हमारे देश का मुख्य व्यवसाय है और उस पर देश की अधिकांश जनसंख्या निर्भर है। लेकिन मौसमी विशेषता होने के कारण किसानों को स्थिर रोजगार प्राप्त नहीं हो पाता हैं।
v) श्रमिकों की सीमित गतिशीलता: भारत में श्रमिकों की गतिशीलता कम है। कई परिवारिक तथा सामाजिक बंधनों के कारण लोग दूर स्थान पर जाने के लिए तैयार नहीं होते है जबकि वहाँ रोजगार उपलब्ध होता है। विभिन्न राज्यों में भाषा, धर्म, जलवायु, रीति-रिवाज, आदि बातें भी उनकी गतिशीलता में रुकावट बन जाती हैं।
बेरोजगारी के आर्थिक तथा सामाजिक परिणाम
(1) आर्थिक परिणाम
i) मानवशक्ति का प्रयोग नहीं: जिस सीमा तक देश में लोग बेरोजगार रहते हैं, उस सीमा तक देश में मानवीय संसाधनों का प्रयोग नहीं हो पाता। यह समाज के लिए एक प्रकार से अपव्यय है।
ii) उत्पादन की हानि:जिस सीमा तक मानवशक्ति का प्रयोग नहीं हो पाता, उस सीमा तक उत्पादन की भी हानि होती है। बेरोजगार व्यक्ति उत्पादन में कोई योगदान नहीं देते हैं जबकि उनमें ऐसा करने की क्षमता होती है।
iii) निम्न पूँजी निर्माण: उपभोक्ता के रूप में जीवन व्यतीत करने से बेरोजगार व्यतीत केवल उपभोग में ही वृद्धि करते हैं। वे न तो धन अर्जित करते हैं और न ही निवेश के लिए बचत करते हैं।
(2) सामाजिक परिमाणम
i) जीवन के निम्न गुणवत्ता: बेरोजगारी जीवन की गुणवत्ता को कम कर देती है इसका अर्थ है नितरण वेदना की अवस्था।
ii) अत्यधिक असमानता: बेरोजगारी की मात्र जितनी अधिक होगी, आय तथा संपत्ति वितरण में असमानता की मात्रा भी अधिक होगी। ऐसी स्थिति में विकास सामाजिक न्याय के साथ नहीं होता है।
भारत में बेरोजगारी की समस्या दूर करने के सुझाव
i) उत्पादन में वृद्धि:रोजगार बढ़ाने के लिए आवश्यक है कि देश में कृषि तथा उद्योगों क्षेत्रों क्यों उत्पादन को बढ़ाया जाए। विदेशी व्यापार को प्रोत्साहित किया जाए और उद्योगों, खनिजों तथा बागानों के पादन को बढ़ाया जाए। जितना उत्पादन अधिक होगा, उतनी ही छम की माँग में वृद्धि अधिक होगी।
ii) उत्पादकता में वृद्धि:श्रम की माँग का श्रम की उत्पादकता से सीधा संबंध है। अधिक उत्पादकता से अधिक लाभ का प्रजनन होता है और उसके फलस्वरुप श्याम की अधिक माँग होती है।
iii) शैक्षिक सुधार: देश में शिक्षा प्रणाली को पूर्ण रूप से बदलने की आवश्यकता है। कॉलेजों तथा विश्वविद्यालयों को चाहिए कि वे केवल उन्हीं छात्रों को प्रवेश द जो वास्तव में कोई भाभी लक्ष्य सामने रखकर अपनी शिक्षा को जारी रखना चाहते हैं। शुरू से ही शिक्षा प्रणाली में व्यावसायिक शिक्षा प्रणाली पर बल दिया जाना चाहिए।
iv) उत्पादन की तकनीक: उत्पादन की तकनीक देश के संसाधनों और आवश्यकताओं के अनुसार होनी चाहिए। यह जरूरी है कि पूंजी प्रधान तकनीक के स्थान पर श्रम प्रधान तकनीक का प्रयोग किया जाए। ऐसे उद्योगों के स्थापना पर बल दिया जाना चाहिए।
सरकारी नीति और कार्यक्रम
1) प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना
i) यह योजना सन् 2001 में आरंभ की गई थी। इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्र में लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए पाँच महत्वपूर्ण क्षेत्रों, i) स्वास्थ्य, ii) प्रथमिक शिक्षा,iii) पेयजल,iv) आवास तथा v) सड़कों का विकास का करना है।
ii) इस योजना के अंदर का तीन परियोजनाएं शामिल की गई; a) प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना,b) प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना,c) प्रधानमंत्री ग्रामीण पेयजल योजना।
2) जय प्रकाश रोजगार गारंटी योजना
इस योजना का उद्देश्य देश के बहुत पिछड़े जिलों में गारंटी रोजगार उपलब्ध कराना है।
3) प्रधानमंत्री रोजगार योजना
यह रोजगार शिक्षित बेरोजगार युवाओं को रोजगार देने के लिए बनाई गई है। यह योजना एक व्यक्ति को अपना उद्यम स्थापित करने के लिए ₹ 1 लाख तथा अन्य क्रियाओं के लिए ₹ 2 लाख ऋण प्रदान करती है।
4) महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण योजना गारंटी अधिनियम
वे सभी व्यक्ति जो न्यूनतम मजदूरी दर पर काम करने इच्छुक हैं, उन्हें 100 दीनों के न्यूनतम अवधि के लिए काम दिया जाएगा। जो रोजगार प्राप्त करना चाहता है उन्हें उन ग्रामीण क्षेत्र में ग्रामीण क्षेत्रों में पहुँचना होगा जहाँ रोजगार कार्य शुरू किया जा रहा है।
5) सूक्ष्म ईकाई विकास वित्तपषण एजेंसी बैंक - मुद्रा बैंक
सरकार ने अप्रैल, 2015 में मुद्रा बैंक की स्थापना की है। इसका उद्देश्य सूक्ष्म उद्यमों तथा स्वरोजगार लोगों की खास संबंधित आवश्यकताओं को पूरा करना है। मुद्रा योजना के अंतर्गत, एक सूक्ष्म उद्यम ₹10 लाख प्रति ईकाई रेन के लिए हकदार है। ऋण के लिए हकदार है।